मित्रो आज बरसो बाद ये दिल फिर उदास है l सच पूछिये तो आँखे रोना भी चाहती है और नही भी आज न जाने क्यों दिल की धड़कन आँखों से धड़कना चाहती है l और इसका कारण कुछ और नही है l हाल ही घटित हुई दुर्घटनाऔ से सम्बंधित है l
जी है मैं बात कर रहा हु l उड़ीसा राज्य की कालाहांडी शहर की जहा हाल ही में दिल को झकझोर कर रखदेने वाली खबर सामने आयी है l जी हां आपका अनुमान बिलकुल सही है मैं आदिवासी दाना मांझी की बात कर रहा हु l जिनकी धर्मपत्नी काफी दिनों से टीबी से ग्रसित थी और उनका इलाज जिलै में स्थित सरकारी अस्पताल में चल रहा था l और टीबी से लड़ते लड़ते आखिर में उनकी पत्नी ने दम तोड़ दिया और पति और अपनी बारह वर्षीय बिटिया को यादो की सौगात देके अलविदा हो चली l
लेकिन दुःख उस बात का नही है की सही समय पे इलाज न हाने से उनकी मौत होगयी l क्योकि जो नियति में लिखा है होना वही है मैं और आप बस उसका पालन कर सकते है l सुनके कलेजा तब काँप उठा जब उस बिचारे गरीब दानं मांझी को अपनी धर्म पत्नी की शव को घर जो की वह से ६० कम के दुरी पर था l
एम्बुलेंस नही उपलब्ध करवाया गया ,क्यों की उस बिचारे के पास पैसे नही थे l जबकि माननीय मुख्यमंत्री द्वारा मरप्रायं कानून लागु किया गया था की ऐसी स्थिति में एम्बुलेंस मुफ्त मौहया कराया जायेगा ,फिर भी वहा की अस्पताल प्रसासन ने उस गरीब की न सुनी और इंसानियत को दर किनार करते हुए उसे मना करदिया l
बिचारा दान मांझी करते तो क्या करते धर्म पत्नी से जो ७ जन्मो का वचन दिया था l विवश होके पत्नी की शव को कम्बल में लपेट करl अपनी रोती बिलखती बिटिया के साथ अपनी कंधो पे रख कर मीलो तक चलते रहे l कभी थक जाते तो किसी पेड़ की छाया में शव को रख कर सुस्ता लेते और फिर अपने मंजिल की और बढ़ते रहते l
हैरत की बात तो यह है की रस्ते में न जाने कितने लोगो का ध्यान उन पर पड़ता कोई देख क्र भी अनजान बनता और कोई फ़ोन से तस्वीरो निकलने में मशगूल होता , लेकिन कोई भी इंसानियत के नाते मदद नही करता l सब तमाश बीन बन कर अपने मुर्दा होने के साबुत देके आगे चले जाते l और बिटिया रो कर खुद ही अपने आंसू को पोछती रहती और फिर दोनों अपने मंजिल की और अपने दाइयित्वो को पूरा करने के लिए निकल जाते और ऐसे करते करते १० किमी तक का पहाड़ जैसा सफर निकल जाता l
हलाकि बाद में उन्हें प्रसासन को शर्मसार हो कर एम्बुलेंस उपलब्ध करवाना पड़ा l सच पूछियो तो दोस्तों सही मायने में दाना मांझी ने जो दस किलोमोटर अपनी पत्नी के शव को कंधो पे रखकर मिलो पैदल चलना पड़ा दरसल उनके कंधो पे उनकी पत्नी नही वो इंसानियत की लाश जा रही थी जिसे सैकड़ो तमाशबीन देखते रहे और अपने मुर्दा होने का साबुत देते रहे l
मित्रो आप ही बताइये किस मुह से कह दू ,भारत दुनिया का सातवाँ अमीर देश है l इस तस्वीर को भी देख मेरे राम और आपके रहीम रोते होंगे और कहते होंगे की सबसे खूबसूरत चीज बनायीं थी धरती पर इंसान लेकिंग निचे जाते ही सब कीड़े बनगए l सही मायने में देखा जाये तो वो लाश दाना मांझी की धर्मपत्नी की नही थी वो लाश इंसानियत की थी जीसे बिचारा वो ले जा रहा था l
आज के हालत को बयान करती बेहद मार्मिक तस्वीर , आज का भारत का नक्शा , इस कलाकृति को बनाने वाले व्यक्ति को सलाम !
कुछ तस्वीरें बोलती हैं !
संगिनी!/
तो क्या हुआ /
जो चार कंधे ना मिले/
मैं अकेला ही बहुvत हूँ/
चल सकूँ लेकर तुझे/
मोक्ष के उस द्वार पर/
धिक्कार है संसार पर/
सात फेरे जब लिए थे/
सात जन्मों के सफर तक/
एक जीवन चलो बीता/
साथ यद्यपि मध्य छूटा/
किन्तु छः है शेष अब भी/
तुम चलो आता हूँ मैं भी/
करके कुछ दायित्व पूरे/
हैं जो कुछ सपने अधूरे/
चल तुझे मैं छोड़ आऊँ/
देह हाथों में उठाकर/
टूट कर न हार कर/
धिक्कार है संसार पर/
तू मेरी है मैं तुझे ले जाऊँगा/
धन नहीं पर हाँथ न फैलाउंगा/
है सुना इस देश में सरकार भी/
योजनाएं है बहुत उपकार भी/
पर कहीं वो कागज़ों पर चल रहीं/
हम गरीबों की चिताएँ जल रहीं/
मील बारह क्या जो होता बारह सौ भी/
यूँ ही ले चलता तुझे कंधों पे ढोकर/ कोई आशा है नहीं मुझको किसी से/
लोग देखें हैं तमाशा मैं हूँ जोकर/
दुःख बहुत होता है मुझको/ लोगों के व्यवहार पर/
धिक्कार है संसार पर/
😰😰😰😰
(उड़ीसा में दाना मांझी द्वारा अपनी पत्नी के शव को कंधे पर उठा कर 1o किमी तक पैदल चलने पर एक कवि की वेदना)
कौन दोषी है कौन नहीं
भूल के
इस पति इस प्रेमी को नमन।
Huhhhhh.....Mera Bharat Mahan...
और अंत मैं यही कहना चाहता हु इंसानियत से बड़ी चीज कुछ भी नही होता l उम्मीद करता हु ऐसी स्थितियां भगवान् न करे अब और कही वो वाकई में इन तस्वीर ने और दाना मांझी ने हमे बहुत कुछ सीखा दिया है l
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