Saturday, 20 August 2016

कचरा बीनने वाला बना फोटोग्राफर

बंगाल के पुरुलिया में जन्में विक्की गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। उस अभाव भरे जीवन में भी उन्होंने एक बेहतर जिंदगी के ख्वाब को जिंदा रखा और सोलह साल की उस छोटी उम्र में घर से भाग गये।
घर से भागकर वे दिल्ली आये। सिमेंट लाने के लिए दिये गये 800 रुपये दिल्ली आकर जल्द ही खत्म हो गये। वापस जाने से बेहतर उन्हें कूड़ा बीनना ज्यादा सही लगा। 

उसके बाद विक्की ने 50 रुपये में एक ढाबे पर बर्तन माजना शुरु किया। एक महिला की मदद से विक्की को एक ठिकाना मिला। सलाम बालक ट्रस्ट नाम की एक एनजीओ ने उसे आसरा दिया। नकी 25 तस्वीरों को नई दिल्ली के इंडिया हैबीटेट गैलरी के लिए चुना गया। उनकी इन तस्वीरों को 'स्ट्रीट ड्रीम' का टाइटिल मिला और उसे ब्रिटिश हाई कमीशन ने स्पॉन्सर किया। अपनी सात फोटो बेचकर सत्तर हजार रुपये कमाये और उसका डिजीटल कैमरा खरीदा। अब विक्की अपनी नई थीम पर काम कर रहें हैं जिसका नाम है 'द विडोज ऑफ इंडिया'।


    2004 में एक ब्रिटिश फोटोग्रफार को असिस्ट करने का मौका मिला। जहां उन्हें दिल्ली की सड़को पर रह रहे गरीब बच्चों की भयानक जिंदगी को कैमरे मे कैद करने की चुनौती मिली। वही से विक्की ने फोटोग्राफी को अपना शौक बना लिया।

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