Friday, 26 August 2016

Now Humanity is no more-इंसानियत अब अलविदा कह चली


मित्रो आज बरसो बाद ये दिल फिर उदास है l सच पूछिये तो आँखे रोना भी चाहती है और नही भी आज न जाने क्यों दिल की धड़कन आँखों से धड़कना  चाहती है l और इसका कारण कुछ और नही है l हाल ही घटित हुई दुर्घटनाऔ से सम्बंधित है l   


   जी है मैं  बात कर रहा हु l उड़ीसा राज्य की कालाहांडी शहर की जहा हाल ही में दिल को झकझोर कर रखदेने वाली खबर सामने आयी है l जी हां  आपका अनुमान बिलकुल सही है मैं  आदिवासी दाना मांझी की बात कर रहा हु l जिनकी धर्मपत्नी काफी दिनों से टीबी से ग्रसित थी और उनका इलाज जिलै में स्थित सरकारी अस्पताल में चल रहा था l और टीबी से लड़ते लड़ते आखिर में उनकी पत्नी ने  दम तोड़ दिया और पति और अपनी बारह वर्षीय बिटिया को यादो की सौगात देके अलविदा हो चली l 

लेकिन दुःख उस बात का नही है की सही समय पे इलाज न हाने से उनकी मौत होगयी l क्योकि जो नियति में लिखा है होना वही है मैं  और आप बस उसका पालन कर सकते है l सुनके कलेजा तब काँप उठा जब उस बिचारे गरीब दानं मांझी को अपनी धर्म पत्नी की शव को घर  जो की  वह   से ६० कम के दुरी पर था l 
एम्बुलेंस नही उपलब्ध करवाया गया ,क्यों की उस बिचारे के पास पैसे नही थे l जबकि माननीय मुख्यमंत्री द्वारा मरप्रायं कानून लागु किया गया था की ऐसी स्थिति में एम्बुलेंस मुफ्त मौहया कराया जायेगा ,फिर भी वहा  की अस्पताल प्रसासन ने उस गरीब की  न सुनी और इंसानियत को दर किनार करते हुए उसे मना  करदिया l 
बिचारा दान मांझी करते तो क्या करते धर्म पत्नी से जो ७ जन्मो का वचन दिया था l विवश  होके पत्नी की शव को कम्बल में लपेट करl अपनी रोती  बिलखती बिटिया के साथ  अपनी कंधो पे रख कर मीलो तक चलते रहे l कभी थक जाते तो किसी पेड़ की छाया में शव को  रख कर सुस्ता लेते और फिर अपने मंजिल की और बढ़ते रहते l 

हैरत की बात तो यह है की रस्ते में न जाने कितने लोगो का ध्यान उन पर पड़ता कोई देख क्र भी अनजान बनता और कोई फ़ोन से तस्वीरो निकलने में मशगूल होता , लेकिन कोई भी इंसानियत के नाते मदद नही करता l  सब तमाश बीन बन कर अपने मुर्दा होने के साबुत देके आगे चले जाते l और बिटिया रो कर खुद ही अपने आंसू को  पोछती रहती और फिर दोनों अपने मंजिल की और अपने दाइयित्वो को पूरा करने के लिए निकल जाते और ऐसे करते करते १० किमी तक का पहाड़ जैसा सफर निकल जाता l


 हलाकि बाद में उन्हें प्रसासन को शर्मसार हो कर एम्बुलेंस उपलब्ध करवाना पड़ा l सच पूछियो तो दोस्तों सही मायने में दाना मांझी ने जो दस किलोमोटर अपनी पत्नी के शव को कंधो पे रखकर मिलो पैदल चलना पड़ा दरसल उनके कंधो पे उनकी पत्नी नही वो इंसानियत की लाश जा रही थी जिसे सैकड़ो तमाशबीन देखते रहे और अपने मुर्दा होने का साबुत देते रहे l 


 मित्रो आप ही बताइये किस मुह से कह दू ,भारत दुनिया का सातवाँ अमीर देश है l इस तस्वीर को भी देख मेरे राम और आपके  रहीम रोते होंगे और कहते होंगे की सबसे खूबसूरत चीज बनायीं थी धरती पर इंसान लेकिंग निचे जाते ही सब  कीड़े बनगए l सही मायने में देखा जाये तो वो लाश दाना  मांझी की धर्मपत्नी की नही थी वो लाश इंसानियत की थी जीसे बिचारा वो ले जा रहा था l 

आज के हालत को बयान करती बेहद मार्मिक तस्वीर , आज का भारत का नक्शा , इस कलाकृति को बनाने वाले व्यक्ति को सलाम !
कुछ तस्वीरें बोलती हैं !
संगिनी!/
तो क्या हुआ / 
जो चार कंधे ना मिले/ 
मैं अकेला ही बहुvत हूँ/ 
चल सकूँ लेकर तुझे/ 
मोक्ष के उस द्वार पर/ 
धिक्कार है संसार पर/
सात फेरे जब लिए थे/
सात जन्मों के सफर तक/
एक जीवन चलो बीता/ 
साथ यद्यपि मध्य छूटा/ 
किन्तु छः है शेष अब भी/
तुम चलो आता हूँ मैं भी/ 
करके कुछ दायित्व पूरे/ 
हैं जो कुछ सपने अधूरे/ 
चल तुझे मैं छोड़ आऊँ/
देह हाथों में उठाकर/ 
टूट कर न हार कर/ 
धिक्कार है संसार पर/
तू मेरी है मैं तुझे ले जाऊँगा/ 
धन नहीं पर हाँथ न फैलाउंगा/ 
है सुना इस देश में सरकार भी/
योजनाएं है बहुत उपकार भी/ 
पर कहीं वो कागज़ों पर चल रहीं/
हम गरीबों की चिताएँ जल रहीं/ 
मील बारह क्या जो होता बारह सौ भी/
यूँ ही ले चलता तुझे कंधों पे ढोकर/ कोई आशा है नहीं मुझको किसी से/
लोग देखें हैं तमाशा मैं हूँ जोकर/
दुःख बहुत होता है मुझको/ लोगों के व्यवहार पर/ 
धिक्कार है संसार पर/ 
😰😰😰😰
(उड़ीसा में दाना मांझी द्वारा अपनी पत्नी के शव को कंधे पर उठा कर 1o  किमी तक पैदल चलने पर एक कवि की वेदना) 
कौन दोषी है कौन नहीं 
भूल के
इस पति इस प्रेमी को नमन।
Huhhhhh.....Mera Bharat Mahan...

और अंत मैं यही कहना चाहता हु इंसानियत से बड़ी चीज कुछ भी नही होता l उम्मीद करता हु ऐसी स्थितियां भगवान् न करे अब और कही वो वाकई में इन तस्वीर ने और दाना  मांझी ने हमे  बहुत कुछ सीखा दिया है l 

Thursday, 25 August 2016

Rajendra Prasad Biography in Hindi

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Rajendra Prasad डा. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति थे | उनका जीवन  सार्वजनिक इतिहास है | वह सादगी ,सेवा , त्याग और देशभक्ति के प्रतिमूर्ति थे | स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने आपको पुरी तरह से होम कर देने वाले राजेन्द्र बाबू अत्यंत सरल और गम्भीर प्रकृति के व्यक्ति थे | वह सभी वर्ग के लोगो से सामान्य व्यवहार रखते थे | लगभग 80 वर्षो के उनके प्रेरक जीवन में साथ साथ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दुसरे चरण को करीब से जानने का एक बेहतर माध्यम उनकी आत्मकथा है |

Rajendra Prasad डा. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के एक छोटे से गाँव जीरोदई में हुआ था | उनके पूर्वज सयुंक्त प्रान्त के अमोढ़ा नाम की जगह से पहले बलिया और फिर बाद में सारन (बिहार ) के जीरोदाई आकर बसे थे | पिता महादेव सहाय की तीन बेटियाँ और दो बेटे तह जिनमे से वह सबसे छोटे थे | प्रारम्भिक शिक्षा उन्ही के गाँव जीरोदाई में हुयी थी | पढाई की तरफ इनका रुझान बचपन से ही था | 1896 में वह जब पांचवी कक्षा में थे तब बारह वर्ष की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हुयी |
आगे पढाई के लिए कलकत्ता विश्वविध्यालय में आवेदन पत्र डाला ,जहा उनका दाखिला हो गया  और 30 रूपये महीने की छात्रवृति मिलने लगी | उनके गाँव से पहली बार किसी युवक ने कलकत्ता विश्वविध्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी  जो निश्चित ही राजेन्द्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी | डिग्री की पढाई पुरी की ,जिसके लिए उन्हें गोल्ड मैडल से सम्मानित किया गया |इसके बाद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और फिर पटना आकर वकालात करें लगे जिससे इन्हें बहुत धन और नाम मिला |Image result for old pics of rajendra prasad

बिहार में अंग्रेज सरकार के नील के खेत थे | सरकार अपने मजदूरों को उचित वेतन नही देती थी | 1917 में गांधीजी ने बिहार आकर इस समस्या को दूर करने की पहल की | उसी दौरान डा. राजेन्द्र प्रसाद उनसे मिले और उनकी विचारधारा से प्रभावित हुए | 1919 में पुरे भारत में सविनय आन्दोलन की लहर थी | गांधी जी ने सभी स्कूल ,सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील की ,जिसके बाद डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी नौकरी छोड़ दी |चम्पारण आन्दोलन के दौरान राजेन्द्र प्रसाद Rajendra Prasad  ,गांधीजी के वफादार साथी बन गये थे | गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने अपनी पुरानी विचारधाराओ का त्याग कर दिया और एक नई उर्जा के साथ आन्दोलन में भाग लिया | 1931 में कांग्रेस ने आन्दोलन छेड़ दिया | इस दौरान डा. राजेन्द्र प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा | उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया | इस दौरान वह गिरफ्तार हुए और नजरबंद कर दिए गये |भले ही 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुयी ,लेकिन सविधान सभा का गठन उससे कुछ समय पहले ही कर लिया गया था जिसके अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद चुने गये थे | सविधान पर हस्ताक्षर करके डा. राजेन्द्र प्रसाद ने ही इसे मान्यता दी थी | भारत की राष्ट्रपति बनने से पहले वह एक मेधावी छात्र , जाने माने वकील , आन्दोलनकारी , सम्पादक ,राष्ट्रीय नेता ,तीन बार अखिल भारतीय कमेटी के अध्यक्ष ,भारत के खाद्य मंत्री एवं कृषि मंत्री और सविधान सभा के अध्यक्ष रह चुके थे |
26 जनवरी 1950 को भारत को डा. राजेन्द्र प्रसाद Rajendra Prasad के रूप में प्रथम राष्ट्रपति मिल गया | 1962 में ही अपने पद को त्याग कर वे पटना चले गये और जन सेवा कर जीवन व्यतीत करने लगे | 1962 में अपने राजनितिक और सामाजिक योगदान के लिए सर्वश्रेष्ट नागरिक सम्मान “भारत रत्न ” से नवाजा गया था | 28 फरवरी 1963 को डा. राजेन्द्र प्रसाद का निधन हो गया |
उनके जीवन से जुडी ऐसी अनेक घटनाये है जो प्रमाणित करती है कि डा. राजेन्द्र प्रसाद Rajendra Prasad बड़े दयालु और निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे | भारतीय राजनीति के इतिहास में उनकी छवि एक महान और विन्रम राष्ट्रपति की है | 1921 से 1946 के दौरान राजनितिक सक्रियता के दिनों में डा. राजेन्द्र प्रसाद पटना स्तिथ बिहार विद्यापीठ भवन में रहे थे | मरणोपरांत उसे “राजेन्द्र प्रसाद संग्रहालय” बना दिया गया |

धर्म बड़ा है या इंसानियत ???

दोस्तों काफी दिनों से सोच रहा था की इंसानियत पे लिखू देश प्रेम पे कुछ लिखू जो आज जा के मकसद पूरा हुआ है l 

 क्या आप जानते है भगवान  ने इस धरती पर सबसे खूबसूरत चीज इंसान बनाई थी l और जो इंसान की इंसान से बाटे वो चीज बनाई थी इंसानो ने "धर्म "मैं  न ही नास्तिक हु और नहीं किसी धर्म के खिलाफ हु l इस ब्लॉग को लिखने का मकसद सिर्फ इतना सा है की इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता l  और जिस मुल्क में देश प्रेम और इंसानियत से ज्यादा लोग धर्म को तवज्जु देते हैl  वो मुल्क कभी तरिक्की नही कर सकता l  जहा लोग धर्म को ज्यादा तवज्जु दे ते है वह सिर्फ और सिर्फ लड़ाई और दंगे हो सकते हैl  विकास नही क्योकि आज कल अलग अलग धर्म के लोग सिर्फ यही सोचते है की उनका धर्म सबसे बड़ा है और अच्छा है l देशप्रेम की और इंसानियत की बात तो उनके मुह से छोर ही दीजिये l और धर्म के नाम पे लोगो को बाटने  का सिलसिला तो न जाने सदियो से चला आरहा है l दोस्तों कभी आपने चीन,जापान , अमेरिका , इंग्लैंड में दंगे होते हुए सुने  है कभी नही क्यों की वह के लोग सिर्फ और सिर्फ विकास कैसे हो अपने मुल्क का इसमें लगे रहते है l आप अमेरिका में जायेंगे तो वहां आप की अमेरिकन्स मिलेंगे और जापान में जायेंगे तो जापानी मिलेंगे l  पर अपने  देश का दुर्भाग्य है किया यह पे  आपको हिन्दू ,मुस्लिम , सिख , ईसाई ,जैन, बुद्धिस्ट,पंजाबी , बिहारी, मराठी , गुजरती,तमिलियन, बंगाली, etc मगर हिन्दुस्तानी बहुत  कम मिलेंगे अगर मिलेंगे भी तो या तो इंडिया पाकिस्तान के क्रिकेट मैच पे या फिर राष्ट्रीय त्यौहार पर उसके बाद सो  जायँगे एक साल के लिए l  एक जमाना था जब लोग इंसानियत और देश प्रेम के लिए जण देते थे l मगर आज ये नेक काम फिर्फ हमारी इंडियन फाॅर्स करती है और कोई नही l  आजादी से पहले अगर बात की जाए तो हर माँ एहि चाहती थी मेरा बीटा भगत सिंह, चंद्रेशेखर  सुखदेव, राजगुरु बने l परंतु आज ये हालात है की हमे भगत सिंह जैसे वीर तो चाहये पर वो  भगत सिंह हमारे घर में नही पडोसी के  घर पे जन्म ले  l हम Hindu Muslim Unityआज भी अपने मंदिरो , मस्जिदों , गिरजाघरों में  सीमेंट की बोरिया पहुचाने   से पहले ये नही देखते  की हमारे पडोसी के घर में आटे  की बोरी है या  नही, मंदिरो, मस्जिदों  में दूध और चादर चढाने से पहले यह नही सोचते की कही पडोसी के बच्चे  के लिए दूध है भी या नही किसी गरीब पड़ोसी के पास सोने के लिए चादर है या नहीl मेरा मानना  धर्म चाहे कोई भी हो लेकिन वो लड़ना आपसी बैर नफरत कभी  नही सिखाता l  फिर ये हमारे दिलो में हमारे बच्चो  के मन में हिन्दू मुस्लिम को एक दूसरे से नफरत की भावना से देखने को सिखा  कोन  रहा है l जब कही दंगे तो है तो वह लोग नही हमेशा इंसानियत मरती है l और जहा इंसानियत मर जाये  तो सिर्फ विनाश होता है  विकास नही l लेकिन ऐसा नही है हमारे देश में कुछ ऐसे लोग और स्थान है जहा इंसानियत आज भी जिन्दा है l 


  1.  
Diwali Ramzan

A Nation cannot progress if there is no unity among the followers of different Religions! Religion is t he Bridge that leads the human to the Divine! That which does not change the individual for the better cannot be called Religion!!  -आनंद सिंह राजपूत  


Saturday, 20 August 2016

Narendra Modi Biography in Hindi

Narendra Damodar Bhai Modi

“मैं प्रधानमंत्री के रूप में नहीं प्रधानसेवक के रूप में आपके बीच उपस्थित हूँ” – Narendra Modiनरेंद्र 

मोदी – एक चाय वाले से प्रधानमंत्री तक का अद्भुत सफर (Narendra Modi’s Incredible Journey From a Tea-Seller To The PM of India and History of Narendra Modi In Hindi)नरेंद्र मोदी हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं। 2014 के चुनावों में उन्होंने भाजपा (B.J.P) को पूर्ण बहुमत से जितवाया। आज मोदी जी ने अपने व्यक्तित्व से बच्चे बच्चे में देश के प्रति कुछ कर गुज़रने की भावना उत्पन्न की है। Narendra Modi का जीवन बहुत ही साधारण तरीके से शुरू हुआ मगर अपनी मेहनत से उन्होंने असाधारण सफलता हासिल की। आज इस लेख (Article) में हम मोदी के चाय बेचने वाले दिनों से प्रधानमंत्री बनने तक के अद्भुत सफर (Amazing Journey and History of Narendra Modi) के बारे में जानेंगे।


















History of Narendra Modi in Hindi

"मुझे देश के लिए मरने का कोई अवसर नहीं मिला, लेकिन मुझे देश के लिए जीने का मौका मिला है  – Narendra Modi"
भारत की आज़ादी के तीन वर्ष बाद गुजरात (Gujarat) के एक छोटे से कस्बे, वड़नगर (Vadnagar) में नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ। दामोदर दास मोदी और हीरा बा की 6 संतानों में से मोदी उनकी तीसरी संतान थे। उनका परिवार बहुत ग़रीब था और एक कच्चे मकान में रहता था। दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी। नरेंद्र मोदी की माँ आस पड़ोस में बर्तन साफ करती थी ताकि अपने बच्चों का पालन पोषण कर सके। उनके पिता रेलवे स्टेशन पर चाय की एक छोटी सी दुकान (Tea Stall on Railway Station) चलाते थे। मोदी बचपन में अपने पिता की चाय की दुकान में उनका हाथ बटाते थे और रेल के डिब्बों में चाय बेचते थे। इन संघर्ष भरे दिनों का मोदी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
चाय की दुकान संभालने के साथ साथ मोदी पढ़ाई लिखाई का भी पूरा ध्यान रखते थे। मोदी को पढ़ने का बहुत शौक था। वे अक्सर अपने स्कूल के पुस्तकालय में घंटों बिता दिया करते थे। उनके सहपाठी (Classmate) और शिक्षक बताते हैं कि मोदी शुरू से ही एक कुशल वक्ता (Excellent speaker) थे और उनमें नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। वे नाटकों और भाषणों में जमकर हिस्सा लेते थे। नरेंद्र को खेलों में भी बहुत दिलचस्पी थी। मोदी हिन्दू और मुस्लिम दोनों के त्यौहार बराबर उत्साह से मनाते थे। मोदी बचपन से ही बहुत बहादुर (Brave) थे। एक बार वे एक मगर के बच्चे को हाथ में उठाकर घर ले आए थे। ऐसे थे हमारे छोटे नरेंद्र।
"जो निरंतर चलते रहते हैं वही बदले में मीठा फल पाते हैं। सूरज की अटलता को देखो – गतिशील और लगातार चलने वाला, कभी ठहरता नहीं, इसलिए बढ़ते चलो  – Narendra Modi"
History of Narendra Modi in Hindi
                              Narendra Modi Childhood Photo
बचपन से ही मोदी में देश भक्ति (Patriotism) कूट कूट कर भरी थी। 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान मोदी रेलवे स्टेशन पर जवानों से भरी ट्रेन में उनके लिए खाना और चाय लेकर जाते थे। 1965 में भारत पाक युद्ध के दौरान भी मोदी ने जवानों की खूब सेवा की। युवावस्था में मोदी पर स्वामी विवेकानंद का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने स्वामी जी के कार्यों का गहराई से अध्ययन किया जिसने उन्हें जीवन के रहस्यों की खोज की तरफ आकर्षित किया और उनमें त्याग और देश भक्ति (Patriotism) की भावनाओं को नई उड़ान दी। उन्होंने स्वामी जी के भारत को विश्व गुरु बनाने के सपने को साकार करना अपने जीवन का मकसद बना लिया।
"एक विचार लो,  उस  विचार  को  अपना जीवन  बना  लो उसके  बारे  में  सोचो  उसके  सपने  देखो, उस  विचार  को  जियो, अपने  मस्तिष्क,  मांसपेशियों,  नसों,  शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो, यही सफल होने का रास्ता है  – Swami Vivekananda

17 साल की उम्र में मोदी ने घर छोड़ दिया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा (Spiritual journey) शुरू की। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण किया। उन्होंने हिमालय में ऋषीकेश, बंगाल में रामकृष्ण आश्रम और पूर्वोत्तर भारत की यात्रा की और फिर दो वर्ष बाद वे घर लौट आए। इन यात्राओं से उन्हें स्वामी विवेकानंद को और गहराई से जानने का सौभाग्य मिला जिसने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। जब वे घर लौटे, उनका मकसद साफ था- राष्ट्र की सेवा (Serving the Nation)। वे केवल दो सप्ताह ही घर पर रुके और फिर अहमदाबाद (Ahmedabad) के लिए निकल पड़े। वहाँ जाकर वे आर.एस.एस. (R.S.S.) के सदस्य बन गए। आर.एस.एस. (R.S.S.) एक ऐसा संगठन है जो देश  के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास के लिए कार्य करता है।
"कड़ी मेहनत कभी थकान नहीं लाती, वह तो संतोष लाती है  – Narendra Modi"Narendra Modi Wikipedia in Hindi
                                              Narendra Modi Young Picture
1972 में मोदी आर.एस.एस. (R.S.S.) के प्रचारक बन गए और अपना सारा समय आर.एस.एस. (R.S.S.) को देने लगे। वे सुबह पाँच बजे उठ जाते और देर रात तक काम करते। इस व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की (Degree in political science)। प्रचारक होने के नाते मोदी ने गुजरात के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण किया और लोगों की समस्याओं को करीब से समझा। 1975 में देश में जब आपातकाल (Emergency) के काले बादल छाए थे, तब आर.एस.एस. (R.S.S.) जैसी संस्थाओं पर प्रतिबंध लग गया था। फिर भी मोदी भेष बदलकर देश की सेवा करते रहे और सरकार की गलत नीतियों का जमकर विरोध किया। आर.एस.एस. (R.S.S.) में बेहतरीन काम की बदौलत उन्हें भाजपा (B.J.P.) में नियुक्त किया गया। Narendra Modi ने 1990 में आडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जिससे भाजपा (B.J.P.) के वरिष्ठ नेता काफी प्रभावित हुए। उनके अद्भुत कार्य की बदौलत भाजपा (B.J.P.) में उनका कद बढ़ता रहा।2001 में Gujarat में भयानक भूकंप (Earthquake) आया और पूरे Gujarat में भारी विनाश हुआ। गुजरात सरकार के राहत कार्य से ना खुश होकर भाजपा (BJP) के वरिष्ठ नेताओं ने Narendra Modi को गुजरात का मुख्यमंत्री (Chief Minister of Guajart) बना दिया। मोदी ने काफी कुशलता से राहत कार्य संभाला और गुजरात को फिर से मज़बूत किया। मोदी ने गुजरात को भारत का सबसे बेहतरीन राज्य बना दिया। उन्होंने गाँव गाँव तक बिजली (Electricity) पहुँचाई। देश में पहली बार किसी राज्य की सभी नदियों को जोड़ा गया जिससे पूरे राज्य में पानी की कमी दूर हुई। एशिया के सबसे बड़े सोलर पार्क (Asia’s Largest Solar Park) का निर्माण Gujarat में हुआ। गुजरात के सभी गाँवों को इंटरनेट से जोड़ा गया और टूरिज़्म को भी बढ़ावा दिया गया (Tourism has also Promoted)। Modi के कार्यकाल में Gujarat में बेरोज़गारी काफी कम हुई (Unemployment Decreased) और महिलाओं की सुरक्षा में काफी मज़बूती आई। इन्ही कारणों की वजह से गुजरात की जनता ने मोदी को चार बार लगातार अपना मुख्यमंत्री (C.M.) नियुक्त किया।

"मेरे जीवन में मिशन (Mission) सबकुछ है, एम्बिशन (Ambition) कुछ भी नहीं … यदि मैं नगर निगम का भी अध्यक्ष होता तो भी उतनी ही मेहनत से काम करता जितना C.M. होते हुए करता हूँ  – Narendra Modi"
Gujarat में Modi की सफलता देखकर भाजपा (B.J.P.) के बड़े नेताओं ने Modi को 2014 लोक सभा चुनावों का प्रधानमंत्री  उम्मीदवार (Prime Minister Candidate) घोषित किया। मोदी ने पूरे भारत में अनेक रैलियाँ की जिनमें हज़ारों लोग उन्हें सुनने आते थे। मोदी ने सोशल मीडिया (Social Media) का भी भरपूर लाभ उठाया और लाखों लोगों तक अपनी बात रखी। मोदी के गुजरात में विकासशील कार्य, उनके प्रेरणादायक भाषण (Inspirational Speech), देश के प्रति उनका प्यार, उनकी साधारण शुरुआत और उनकीसकारात्मक सोच (Positive thinking) के कारण उन्हें भारी मात्रा में वोट मिले और वे भारत के पंद्रहवे प्रधानमंत्री बने (India ‘s Fifteenth Prime Minister)।
प्रधानमंत्री (P.M.) बनने के बाद वे भारत का कुशलता से नेतृत्व कर रहे हैं और भारत को नई उचाईओं पर पहुँचा रहे हैं। उन्होंने कई विदेश यात्राएँ की और भारत की छवि संपूर्ण विश्व में मज़बूत की। इसी कारण विदेशों द्वारा भारत में काफी निवेश हुआ। मोदी ने पड़ोसी देशों से भी काफी अच्छे संबंध बनाए। मोदी ने जन धन योजना (Jan Dhan Yojna), स्वच्छ भारत अभियान (Clean India Campaign), मेक इन इंडिया (Make in India) और डिजिटल इंडिया (Digital India) जैसी  कई योजनाओं की शुरुआत की जिससे India में काफी विकास (Development) हो रहा है ।
"अगर 125 करोड़ भारतीय एकता, शांति और सदभाव के मंत्र के साथ कंधे से कंधा मिला कर एक कदम बढ़ाएं तो देश एक बार में 125 करोड़ कदम आगे बढ़ जाएगा  – Narendra Modi"

Narendra Modi बहुत ही मेहनती व्यक्ति हैं। वे 18 घंटे काम करते हैं और कुछ ही घंटे सोते हैं। वे शुद्ध शाकाहारी (Vegetarian) हैं और नवरात्रों के नौ दिन उपवास रखते हैं। मोदी अपनी सेहत का भरपूर ध्यान रखते हैं और प्रतिदिन योग (Yoga) करते हैं, भले ही वे कहीं भी हों। मोदी हमेशा साफ कपड़े पहनते हैं और लोग उन्हें फैशन आइकॉन के रूप में देखते हैं। नेता होने के अलावा मोदी एक कवि और लेखक भी हैं। वे अपने भाषणों से लाखों युवाओं का मनोबल बढ़ाते हैं और उनमें देश भक्ति की भावना जगाते हैं।
मोदी जी (Modi Biography) से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा मेहनत करनी चाहिए और निस्वार्थ भाव से देश की सेवा करनी चाहिए। ये हमारे गणतंत्र की ताकत ही है जिसने एक चाय वाले को देश का प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनने का अवसर दिया। उम्मीद है आप सभी को Narendra Modi के जीवन से प्रेरणा (Inspirational) मिलेगी और आप अपने सपने साकार करेंगे। मेरी आप सभी से यह विनती है कि हमें मोदी जी के भारत को विश्व गुरु बनाने के मिशन में उनका पूरा साथ देना चाहिए। धन्यवाद। 



कचरा बीनने वाला बना फोटोग्राफर

बंगाल के पुरुलिया में जन्में विक्की गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। उस अभाव भरे जीवन में भी उन्होंने एक बेहतर जिंदगी के ख्वाब को जिंदा रखा और सोलह साल की उस छोटी उम्र में घर से भाग गये।
घर से भागकर वे दिल्ली आये। सिमेंट लाने के लिए दिये गये 800 रुपये दिल्ली आकर जल्द ही खत्म हो गये। वापस जाने से बेहतर उन्हें कूड़ा बीनना ज्यादा सही लगा। 

उसके बाद विक्की ने 50 रुपये में एक ढाबे पर बर्तन माजना शुरु किया। एक महिला की मदद से विक्की को एक ठिकाना मिला। सलाम बालक ट्रस्ट नाम की एक एनजीओ ने उसे आसरा दिया। नकी 25 तस्वीरों को नई दिल्ली के इंडिया हैबीटेट गैलरी के लिए चुना गया। उनकी इन तस्वीरों को 'स्ट्रीट ड्रीम' का टाइटिल मिला और उसे ब्रिटिश हाई कमीशन ने स्पॉन्सर किया। अपनी सात फोटो बेचकर सत्तर हजार रुपये कमाये और उसका डिजीटल कैमरा खरीदा। अब विक्की अपनी नई थीम पर काम कर रहें हैं जिसका नाम है 'द विडोज ऑफ इंडिया'।


    2004 में एक ब्रिटिश फोटोग्रफार को असिस्ट करने का मौका मिला। जहां उन्हें दिल्ली की सड़को पर रह रहे गरीब बच्चों की भयानक जिंदगी को कैमरे मे कैद करने की चुनौती मिली। वही से विक्की ने फोटोग्राफी को अपना शौक बना लिया।

    Wednesday, 17 August 2016

    रक्षा बंधन - ऐतिहासिक प्रसंग

    राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।

    राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है।  मुगल काल के दौर में जब मुगल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया।  हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु  बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की। 

    सुभद्राकुमारी चौहान ने शायद इसी का उल्लेख अपनी कविता, 'राखी' में किया है:

    मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी
    जब-जब राखी भिजवाई
    रक्षा करने दौड़ पड़े वे
    राखी-बन्द शत्रु-भाई॥

    Tuesday, 16 August 2016

    Lets Know about My Village Short History

    Hello Friends,
    Good Evening to all of you, this is my first blog"Hausa", So firstly i want to start from My village summary, actually Hasua is my village Name,there is two reason to keep blog name is Hasua first reason is I love My village & second is i was unable to find other name.:) :)
    So lets know about Hasua.





    Hasua is a village positioned in Ziradei Block of Siwan district in Bihar. Positioned in rural area of Siwan district of Bihar, it is one among the 80 villages of Ziradei Block of Siwan district. According to the administration register, the village number of Hasua is 232027. The village has 1143 families.

    Population of Hasua village

    According to Census 2011, Hasua's population is 7036. Out of this, 3505 are males while the females count 3531 here. This village has 1118 children in the age bracket of 0-6 years. Among them 598 are boys and 520 are girls.

    Literacy rate of Hasua village

    Literacy rate in Hasua village is 57%. 4017 out of total 7036 population is educated here. Among males the literacy ratio is 65% as 2296 males out of total 3505 are educated whereas female literacy rate is 48% as 1721 out of total 3531 females are educated in this Village.
    The dark part is that illiteracy ratio of Hasua village is 42%. Here 3019 out of total 7036 persons are illiterate. Male illiteracy ratio here is 34% as 1209 males out of total 3505 are uneducated. Among the females the illiteracy rate is 51% and 1810 out of total 3531 females are illiterate in this village.

    Agricultural status of Hasua village

    The number of employed people of Hasua village is 2100 whereas 4936 are un-employed. And out of 2100 employed people 442 individuals are fully dependent on farming.