Saturday 23 March 2019


                                                  "आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है" -आनंद सिंह राजपूत 
निकला है करने किसी की करोड़ो की रखवाली -२
और खुद अपना ही दरवाजा खुला छोर आया है

आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
करनी है वक्त पे उसे उसकी  बिटिया की शादी
इसीलिए  वो किसी सेठ को अपना वक्त बेच आया है


आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
मिला है आज उसे साहब से फरमान की मेरी बिटिया को मेला घुमा  लाओ
वो पगला खुद अपनी बिटिया को घर में अकेला छोर आया है


आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
करता है  जो सोने के खानो  की रखवाली वो आज पीतल में बिटिया को ब्याह के आया है

आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
करता है  हिफाजत बड़े महंगे स्कूलों की वो
मगर चूति है छत जो उस स्कूल में बेटे को पढता छोर आया है

आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
हम सो जाते है चैन ो सक्कों से रत भर उसके भरोसे
और वो पगला अपना चैन और सक्कों कही खो आया है

आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है
यू तो वो पहरेदार है बड़े दवाखाने का
मगर वो आज माँ की दवाई फिर से उधर ले आया है
आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है


बुलाता है गांव संग  दोस्त उसको मिलने के लिए
मगर वो सबकुछ छोर छार पांव पटक कर आया है

आज फिर वक्त से काम पे लौट आया है








Sunday 10 March 2019

" स्कूल वाले दिन"
याद आते है वो स्कूल की बाते l
जब दोस्तों के साथ थे हम स्कूल जाते l
हम दोस्तों का रास्तो में एक दूसरे से दुनिया जहान की बाते करना l
मैडम से पीटते दोस्तों को देख वो हसी का छूट पड़ना l
याद आता है वो रास्ते में जब मारते थे प्लास्टिक की बोतलो को ठोकर l
कभी हसते -हसते जाते थे स्कूल तो कभी जाते थे रोकर l
याद आता है वो लंच साथ में जाना l
टॉयलेट के बहाने पुरे स्कूल का चक्कर लगाना l

याद आता है वो एक समोसे पे तीन हाथ होना l 
वो पनिशमेंट में भी दोस्तों का साथ होना l 

याद आता है वो आयरन स्केल की चोट l 
बारिश में बनाना पेपर बोट 

याद आता है क्रश को कैंटीन के रश से बचाना l 
वो कैंटीन की एमसी को बंद कर अँधेरे में शोर मचाना l 

याद आता है वो डस्टर के साथ खेलना l
एक दूसरे के सर पे स्वेटर डाल के बेवजह हाथो से पेलना l
याद आता है वो प्रेयर में एक आंख का खुले रखना l
चुप चाप पीछे वाली लाइन से ही क्लास में सरकना l
छूटी की बेल्ल सुनती ही भाग स्कूल से बाहर आना l
फिर हसते हसते दोस्तों से मिल जाना l
याद आता है वो बास्ते का बोझ और हाथ में थरमस का पानी l
किसे पता था ये बचपन की दोस्ती छीन लेगी ये जवानी l '
याद आता है वो फेयरवेल के दिन सबके साथ फोटो खिचवाना
पता था कल के बाद नहीं मिलेंगे फिर भी आँखों को पोछते हुए एक दूसरे को देख कर मुस्कुराना l

Friday 22 February 2019

हा थोड़ा सा वक्त लगेगा उसे भुलाने में l 
क्योकि लगा है अरसा मुझे अपने इश्क़ का अहसाह दिलाने में l 
पर इश्क़ मेरा सच्चा था पगली तूने ही देर करदी आज़माने में l 

हा थोड़ा सा वक्त लगेगा उसे भुलाने में l 
कुंदन सा था मै और वो थी मेरी ज़ोया l 
उसने जब बताया की वो किसी और की है तब तनहा बैठ के था रोया l 

हा थोड़ा सा वक्त लगेगा उसे भुलाने में l 
मै ईश्वर की आरती था वो पाक अल्लाह की अज़ान थी l 
वो मेरी और वो किसी और की जान थी l 
 
हा थोड़ा सा वक्त लगेगा उसे भुलाने में l 
सजदे मैंने भी किये थे उसे पाने में लेकिन शायद कोई कमी रहगयी उसके मेरे होजाने में l 
उसकी किस्मत में तो सिर्फ "Ishraq " था पर इश्क़ मेरा भी क़ुराने पाक था l 

हा थोड़ा सा वक्त लगेगा उसे भुलाने में l 
वादे किये थे जो उससे की कभी hurt नहीं करूँगा और खुद से भी किये थे की अब याद नहीं करूँगा l 
देख अब मशगूल होजाऊंगा वो हर वादा निभाने में l


हा "lshruk "  थोड़ा सा वक्त लगेगा तुझे भुलाने में l 

 Written by - Anand Singh Rajput